जलगांव (महाराष्ट्र) :- आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा के हित के लिए ज्ञान का बहुत महत्त्व होता है। यदि सद्ज्ञान हो जाए तो आदमी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है तथा कभी और अधिक विकास करता हुआ मुक्ति के पथ पर भी अग्रसर हो सकता है।
सद्ज्ञान की प्राप्ति संतों की संगति करने की बात बताई गई है। कंचन-कामिनी के त्यागी संतों की कुछ क्षण की संगति भी आदमी के जीवन की दशा और दिशा को बदल देने वाली हो सकती है। संतों की वाणी से सद्ज्ञान की प्राप्ति हो और इसके उपरान्त सद्चरित्र का निर्माण हो जाए तो जीवन का कल्याण भी संभव हो सकता है, कभी इतना भी विकास हो जाए कि मन में वैराग्य भावना भी जागृत हो जाए और मानव संसार सागर से तरने के लिए साधुता के पथ पर भी अग्रसर हो सकता है।
इसलिए मानव जीवन में सत्संगति का बहुत महत्त्व है। सत्संगति से अच्छी प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन को धर्म और कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी को पापाचार को छोड़कर धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए।