लगांव (महाराष्ट्र) : आचार्यश्री महाश्रमणजी टाकरखेड़े गांव में स्थित जिला परिषद उच्च प्राथमिकशाला में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में ज्ञान का महत्त्व होता है तो आचरण का भी बहुत महत्त्व होता है। जीवन में सदाचरण का नहीं होना जीवन की एक कमी होती है। ज्ञान और आचरण मानव जीवन रूपी नदी के दो किनारे हैं। ज्ञान आचरण में उतरे इसके लिए श्रद्धा, भक्ति व आस्था रूपी सेतु की आवश्यकता होती है। ज्ञान होने के उपरान्त उसके प्रति भक्ति हो जाए, आस्था दृढ़ हो जाए तो फिर वह ज्ञान आचरणगत भी हो सकता है।
आगमवाणी व गुरु के प्रति आस्था व भक्ति की भावना का होना आवश्यक होता है। एक तो आदमी व्यवहार में ऊपरी मन से दिखावा करता है और दूसरी ओर आस्था हो जाए तो वह मन से हृदय से जुड़ जाता है। किसी बात अथवा कार्य पर आंतरिक अनुराग और आस्था न हो तो उस कार्य में कमी हो सकती है। इसलिए आदमी को अपनी आस्था को दृढ़ रखने का प्रयास करना चाहिए। आस्था, भक्ति दृढ़ हो तो भक्ति की शति से आदमी आगे विकास भी कर सकता है। अपने आराध्य व साध्य के प्रति आस्था, भक्ति को दृढ़ बनाने का प्रयास होना चाहिए।