स्वावलंबी भारत के लिए हमारे भीतर स्वाभिमान का भाव जाग्रत होना आवश्यक
स्वावलम्बी भारत और समग्र विकास' विषय पर व्याख्यान का आयोज
जयपुर । 'स्वावलम्बी भारत और समग्र विकास' विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम शनिवार को राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी पीठ सभागार में आयोजित किया गया। शैक्षिक मंथन संस्थान, जयपुर द्वारा आयोजित इस व्याख्यान में राष्ट्र निर्माण के लिए आत्मनिर्भरता के महत्व, भारत के स्वत्व का पुनरुत्थान, धारणक्षम आर्थिक विकास, सामाजिक समरसता और पर्यावरणीय स्थिरता सहित अनेक बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं सारस्वत वक्ता यूनेस्को द्वारा संचालित महात्मा गाँधी शांति एवं विकास संस्थान के अध्यक्ष एवं स्वावलम्बन अभियान के अखिल भारतीय समन्वयक प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में किसान और छोटे उत्पादक यदि अपने क्षेत्र में ही अपने उत्पादों का मूल्य संवर्धन करना सीख जाएं तो किसानों एवं छोटे उत्पादकों की आय कई गुना बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि स्वावलंबी भारत होने के लिए हमारे भीतर स्वाभिमान का भाव जाग्रत होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें 'मेड इन इंडिया' से 'मेड बाई इंडिया' की ओर जाना होगा। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में भारत ने विश्व की पांच अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ा है।
इससे पूर्व व्याख्यान के विषय का प्रवर्तन करते हुए शैक्षिक मंथन संस्थान के सचिव मोहन पुरोहित ने कहा कि आज स्वरोजगार के क्षेत्र में स्वावलंबन की महती आवश्यकता है।
राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अल्पना कटेजा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि कोरोना काल में वैक्सीन बनाने से लेकर चिकित्सा के क्षेत्र में भारत उल्लेखनीय रूप से स्वावलंबी बना है। भारत ने विगत एक दशक में चिकित्सा, रक्षा, कृषि, उद्योग, ऊर्जा, वाणिज्य और विदेश नीति की दृष्टि से खुद को स्वावलंबी बनाया है। उन्होंने शिक्षा को उद्यमिता से जोड़ने का भी आह्वान किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जे.पी. सिंघल ने अपने व्याख्यान में बताया कि हमें विकास की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है। घर का काम करनेवाली गृहणियों के श्रम का भी मूल्य है जो जीडीपी में सम्मिलित होना चाहिए। हमारे सांस्कृतिक मूल्य, कुटुंब व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी विकास के घटक हैं। उन्होंने कहा कि स्वावलंबी भारत के लिए हमें स्थानीय उत्पाद, स्थानीय शिक्षा पर बल देना होगा।
कार्यक्रम का संचालन शैक्षिक मंथन के संपादक प्रो. शिवशरण कौशिक ने किया। धन्यवाद ज्ञापन शैक्षिक मंथन संस्थान के व्यवस्थापक बसंत जिंदल ने किया। कार्यक्रम में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रदेश संगठन मंत्री घनश्याम, अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राजस्थान (उच्च शिक्षा) के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. दीपक कुमार शर्मा सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विद्यालयों से सैकड़ों शिक्षक, विद्यार्थी उपस्थित रहे। वंदे मातरम् के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
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