प्रकृति केंद्रित विकास सनातन संस्कृति की पहचान है

जल,जंगल, जमीन, जानवर और मानव के सह अस्तित्व वाला विकास का मॉडल अपनाना होगा- केएन गोविंदाचार्य

Mar 29, 2024 - 20:41
 0  7
प्रकृति केंद्रित विकास सनातन संस्कृति की पहचान है
प्रकृति केंद्रित विकास सनातन संस्कृति की पहचान है
प्रकृति केंद्रित विकास सनातन संस्कृति की पहचान है

जयपुर, । विचारक एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक श्री के एन गोविंदाचार्य ने दुनिया के सभी नागरिकों और सरकारों का आह्वान करते हुए कहा कि हमें विकास के मॉडल पर पुनर्विचार करना होगा व प्रकृति केंद्रित विकास जो की सनातन संस्कृति की पहचान है व जिसके अंतर्गत जल जंगल जमीन जानवर व मानव का सौहार्दपूर्ण सह अस्तित्व हो, विकास का वही मॉडल पूरी दुनिया में खुशी ,आनंद ,समृद्धि और सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

 श्री गोविंदाचार्य ने उक्त विचार राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के पश्चिम क्षेत्र के जयपुर में तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन सत्र में उक्त विचार व्यक्त किये। इस शिविर में सात राज्यों के लगभग 80 चुनिंदा प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं ।

श्री गोविंदाचार्य ने कहा कि हमने अभी तक आधुनिक विकास के जो भी कदम बढ़ाए हैं वह न केवल प्रकृति के सभी अंगों के लिए घातक साबित हो रहे हैं बल्कि मानव सहित सभी प्राणियों के जीवन पर प्रकृति की अनमोल देन नदियों, पहाड़ों, झरनों ग्लेशियर, पेड़ पौधे, जड़ी बूटियों, जीव जंतु व महासागरों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। यह वक्त की मांग है की दुनिया के सभी देश, सभी सरकारें, राजनेता, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, प्रशासनिक अधिकारी मिलकर प्रकृति केंद्रित विकास की मुहिम को बढ़ावा दें।

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक श्री बसवराज पाटिल ने कहा की आने वाले समय में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन द्वारा देश के सभी राज्यों में संगठन की इकाइयों के विस्तार की जो योजना बन रही है व विभिन्न क्षेत्र के प्रतिभाशाली लोग जो समाज परिवर्तन व व्यवस्था परिवर्तन हेतु नवाचार में लगे हैं उनकी संगठन में सक्रियता व सहभागिता से देश को नया नेतृत्व मिलने की आस है।

मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री श्री वीरेंद्र पांडे ने कहा कि व्यवस्था परिवर्तन समय की मांग है । उन्होंने अलग-अलग पेंशन योजना को बंद करने के साथ ही त्याग को पुरस्कृत और सम्मान करने की बात कही। जनता में लोक कल्याण का भाव पैदा करने वाली शिक्षा पद्धति अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हम जल और अन्न के संकट से जूझेंगें। इंदौर जैसा विकसित शहर आज जल संकट से जूझ रहा है। स्वच्छ पेयजल व कुपोषण के अभाव में लगभग 33 लाख लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार होकर समय से पहले मर रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक कैलाश चंद्र शर्मा ने कहा कि हमें भारत में जन्म मिला यह हमारा सौभाग्य है। हमारी परंपराएं व गौरवशाली इतिहास हमें मजबूती प्रदान करती है। लेकिन आज हर इंसान में संवेदनशीलता का भाव है। हमारा कर्तव्य है कि हम सकारात्मकता के साथ सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहें, हमारे सामाजिक ताने-बाने में व पारिवारिक माहौल में संवाद व प्रकृति के सानिध्य में रहकर ही शांति व समृद्धि मिल सकती है। शर्मा ने कहा कि सामाजिक समरसता की बातें तो होती है पर वह मानवीय आचरण में नहीं है।

 वरिष्ठ प्रचारक और संविधान विशेषज्ञ लक्ष्मी नारायण भाला ने कहा कि संविधान हमेशा अच्छे हाथों में रहना चाहिए जो मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सके व नीति निर्धारण को दिशा दे सके। लक्ष्मी नारायण ने आगे कहा कि अपने कामों को अपने क्षेत्र में पूर्ण रूप से समर्पित होकर करना ही स्वाभिमान है। संविधान भले ही लचीला हो उसका दुरुपयोग चिंता का विषय है। संविधान की भावना को समझना जरूरी है ना कि उसके टेक्स्ट को। नीति निर्धारण के लिए गीता सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है संविधान का सरलीकरण और उसके पूर्ण लेखन का कार्य हो।

महान गांधीवादी चिंतक व एकता परिषद के पीवी राजगोपाल ने कहा कि अहिंसा की बात गहराई से होनी चाहिए। हमारी पहचान भगवान बुद्ध महावीर विवेकानंद से है उन्होंने अहिंसा का मंत्र दिया व शांति कायम करने के लिए संवाद की कला के प्रोत्साहन के लिए संस्थान की स्थापना की आवश्यकता प्रतिपादित की। उन्होंने कहा कि अहिंसात्मक तरीके से पूरे विश्व को समझाया जा सकता है हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं जो हिंसक है और बहुत ही प्रतिस्पर्धी है उन्होंने समृद्ध व बदलाव के लिए चार तरीके बताएं अहिंसात्मक तरीके से विरोध हो सरकार को आंदोलन से संवाद करना चाहिए, अधिकारियों को संवाद की कला का प्रशिक्षण दिया जाए

।चंद्रशेखर प्राण ने कार्यकर्ता निर्माण एवं नेतृत्व विकास और सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने हमारा दर्शन प्रकृति केंद्र विकास और विनय भूषण जी ने परिचय सत्र की अध्यक्षता की।

पूर्व विधायक नवरत्न राजोरिया ने बताया कि शनिवार 30 मार्च को व्यवस्था परिवर्तन, संगठन की सामान्य कार्य पद्धति, संगठन की पहचान: भारत परस्त गरीब परस्त जन संगठन बने, संगठन के कार्य पद्धति के सुत्र,मुक्त सत्र, संगठन विस्तार व संगठन विस्तार आगामी कार्य योजना एवं रणनीति आदि सत्र होगें।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

SJK News Chief Editor (SJK News)