दिव्य जीवन जीने की कला का दूसरा नाम है संबोधि-साधना - राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ जी

Mar 23, 2024 - 23:12
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दिव्य जीवन जीने की कला का दूसरा नाम है संबोधि-साधना - राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ जी
दिव्य जीवन जीने की कला का दूसरा नाम है संबोधि-साधना - राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ जी

जोधपुर, । संबोधि साधना के प्रणेता, राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ जी महाराज ने कहा कि दिव्य जीवन जीने की कला का दूसरा नाम है संबोधि-साधना। सत्य, शांति, प्रेम, करुणा और आनंद इसके सकारात्मक परिणाम हैं। जीवन के हर कार्य को सजगता एवं प्रसन्नता के साथ सम्पन्न करना ही संबोधि-साधना है। इस साधना में हम सीखते हैं आँख बंद कर कैसे ध्यान करें और आँख खुले तो कैसे ध्यान से हर काम करें। भीतर और बाहर दोनों के साथ ध्यान को जोड़कर हम सहजतापूर्वक योगमय जीवन जी सकते हैं। उन्होंने कहा कि आनंदपूर्वक कर्म करना कर्म-योग है, प्रभु को दिल में बसाकर रखना भक्ति-योग है और सजगतापूर्वक जीना ज्ञान-योग है। इन तीनों योगों को जीवन में उतार लेना संबोधि योग है।

संतप्रवर बुधवार को संबोधि पावर योगा एंड मेडिटेशन कैंप के शुभारंभ पर कायलाना रोड़ स्थित प्रसिद्ध साधना-स्थली संबोधि धाम में देशभर से जोधपुर पहुंचे साधकगणों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मन की शांति और आत्मा का आनंद पाने के लिए संबोधि-साधना राजमार्ग है। इस साधना से हमारे तन और मन के रोग कटते हैं, दिल और दिमाग में स्वास्थ्य और संतुलन का संचार होता है, अंतर्मन में ज्ञान के नए रहस्य उद्घाटित होते हैं, हृदय में मुक्ति का कमल खिलता है और रोम-रोम में प्रसन्नता तथा पवित्रता का संचार होने लगता है।

उन्होंने कहा कि संबोधि में दो शब्द हैं - सम् और बोधि अर्थात सही बोध, सत्य का बोध। हमारे जीवन का एक ही परम लक्ष्य है - आत्मिक शांति और संबोधि की प्राप्ति, जिसे उपलब्ध होने पर हम समस्त प्रकार के दुख, अशांति व तनावों से मुक्त हो जाते हैं और प्रतिपल परम शांति और असीम आनंद का अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि संबोधि-साधना पथ के 5 मील के पत्थर हैं

उन्होंने कहा कि संबोधि-साधना पथ के 5 मील के पत्थर हैं - 1. सहजता अर्थात ईजीनेसए 2. सकारात्मकता अर्थात पॉजिटिवनेसए 3. सचेतनता अर्थात अवेयरनेस,, 4. प्रसन्नता अर्थात हैप्पीनेस, 5. निर्लिप्तता अर्थात फ्रीनेस। संबोधि साधना में इस पूरे पंचामृत को जीवन में आत्मसात करने के प्रयोग करवाए जाते हैं।

संबोधि - साधना पथ का सार

उन्होंने कहा कि संबोधि ध्यान मार्ग के रूप में साधना का जो स्वरूप स्थापित किया है वह ध्यानयोग के विभिन्न पहलुओं को जीवन में जोड़कर और अनुभवों की कसौटी पर कस कर ही प्रस्तुत किया है। अनुत्तर योगी भगवान महावीर, तथागत गौतम बुद्ध और महान योगी महर्षि पतंजलि के साधनागत निर्देशों को संबोधि-साधना में शामिल किया गया है। शरीर, मन और आत्मा की शांति और शुद्धि के लिए संबोधि-साधना एक संपूर्ण योग-मार्ग है। इस साधना का किसी जाति, पंथ या परंपरा से कोई विशेष संबंध नहीं है। यह हमें सीधे अंतर्मन से जोड़ती है और उसे दिव्य स्वरूप प्रदान करती है। अधिक स्वस्थ, सुव्यवस्थित और ऊर्जावान जीवन जीने के लिए संबोधि-साधना संजीवनी का काम करती है। सार रूप में निज चेतना में परमात्म-चेतना का अनुभव और जीते जी मुक्ति का रसास्वादन संबोधि-साधना का पहला और आखिरी लक्ष्य है।

उन्होंने कहा कि संबोधि साधना के दो कोर्स हैं। पहला कोर्स सक्रिय साधना का है जो हमारे भीतर ऊर्जा जागरण, आत्मविश्वास और आन्तरिक दिव्यता लाने में हमारी मदद करता है। दूसरा कोर्स सचेतन साधना का है, जो हमें आन्तरिक शांति, सत्यबोध और चेतना के रूपान्तरण में खास उपयोगी है। उन्होंने कहा कि संबोधि ध्यान शिविर के सात फायदे हैं - 1. सकारात्मक जीवन जीने की कला सीखने का अवसर, 2. स्वास्थ्यपरक पावरफुल योग का सरल अभ्यास, 3. प्राण-चेतना का जागरण, 4. अंतर्मन की शांति एवं आत्मिक आनंद की प्राप्ति, 5. क्रोध, तनाव, निराशा जैसे नकारात्मक भावों से छुटकारा, 6. स्मरण-शक्ति और मानसिक एकाग्रता में बढ़ोतरी, 7. अध्यात्म की सही समझ एवं अनुभूति।

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SJK News Chief Editor (SJK News)