अंतरंग साधना के अभाव में लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती - निर्यापक मुनिश्री समय सागर जी
मोक्ष मार्ग जटिल हो सकता है पर कुटिल नहीं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की साधना से जगत आलोकित - मुनि समय सागर जी महाराज
कुंडलपुर दमोह। सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युगश्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य ज्येष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा द्रव्य अविनश्वर है किंतु अवस्थाएं परिवर्तन को लिए हुए होती हैं।
यहां पर कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है जहां पर इस क्षेत्र में प्रवेश करते ही अनायास परिणामों में उज्जवलता आती है ।उज्जवलता क्यों आती है जहां पर करोड़ों वर्ष पूर्व साधना की है साधकों ने और सिद्दत्व को उपलब्ध कर लिया उसे क्षेत्र पर आते ही बिना किसी पुरुषार्थ के भी मन केंद्रित हो जाता ।
मन को केंद्रित करने के लिए बार-बार गुरुदेव का भी यही संकेत रहा है कि वहिरंग साधना करते हुए अनंत काल व्यतीत हुआ है किंतु वह साधना सिद्दत्व को प्राप्त करने में कारण क्यों नहीं सिद्ध हुई। क्योंकि वह वहि रंग साधना थी और अंतरंग साधना के अभाव में लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती।
अब जब तक अंतरंग साधना नहीं होती तब तक बहुत कुछ आशाएं साथ लगी हुई होती ।एक बार गुरुदेव के चरणों में पहुंचे दर्शन हेतु वहां पर उन्होंने एक बात बहुत मार्के की कही है बात यह है मोक्ष मार्ग जटिल तो है किंतु कुटिल नहीं है । इन पंक्तियों को जब हमने सुना हमारी आंखें भी खुल गई। गुरुदेव के एक-एक वचन गुड वचन माने जाते और कुंदकुंद देव ने गुरु वचन को उपकर्म के रहते स्वीकार किया।
गुरु के वचन हमारे लिए उपकर्म के रूप में है ।गुरुदेव रहे नहीं हम किसकी शरण में जाएं बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह था। आत्म साधना के माध्यम से विश्व को जो प्रकाश दिया है प्रकाश में हम और आप रह रहे हैं हमें किस बात का विकल्प है सारे विकल्प शांत होना चाहिए। मोह को समाप्त करना हंसी खेल नहीं। मोह ऐसे समाप्त नहीं होता ।तीर्थंकर बने अथवा ना बने तीर्थंकर के चरणों में एक स्थान में स्थान मिल जाए बहुत बड़ी बात है।
समोशरण में वह केवली तीर्थंकर हैं मोक्ष मार्ग के नेता के चरणों में स्थान मिलना बहुत दुर्लभ बात है ।आचार्य महाराज की कितनी दूर दृष्टि है। हमारा हृदय हमेशा गुरु के चरणों में रहे। इन वचनों को हम बुद्धि का विषय बनाते जिसके हृदय में गुरु और प्रभु विराजमान हो उसके लिए कोई कठिनाई नहीं जाती।
इतने महान आचार्य के चरणों में रहकर 40 -45 साल उनके चरणों में ,उनकी छत्रछाया में, उनकी आज्ञा में साधना करने का रत्नत्रय की आराधना करने का हम लोगों को सौभाग्य मिला। सारा का सारा दृश्य उन्हें देखने को मिल रहा है वह देख रहे हैं और बड़े बाबा भी देख रहे हैं। उनके गुणानुवाद करने शब्द नहीं है।
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