महाराज दाहिर सैन ने सनातन हिंदू धर्म को राजधर्म घोषित किया
सिंधु सम्राट दाहिर सैन के 1312 वें बलिदान दिवस पर इंदौर में सिंधी संस्थाओं ने देवनानी का किया अभिनंदन— महाराज दाहिर सैन ने सनातन हिंदू धर्म को राजधर्म घोषित किया, सिंध ने सबसे पहले आक्रांताओं से मुकाबला किया और राष्ट्र के लिए शहादत देने में आगे रहा
जयपुर । राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि महाराजा दाहिर सेन की वीरता, राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान को राष्ट्र सदैव स्मरण करता रहेगा। जब भी भारत पर आक्रांताओं ने आक्रमण किया, तब सबसे पहले सिंध ने आक्रांताओं का डटकर मुकाबला किया और शहादत दीं। महाराज दाहिर सेन ने आक्रमणकारियों को बार-बार खदेड़ा। मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने बलिदान दिया। उनके पूरे परिवार, उनकी पत्नी और दोनों पुत्री ने भी राष्ट्र के लिए बलिदान दिया। हर बार विदेशी आक्रांताओं के हमलों को महाराजा दाहिर सैन ने नाकाम किया।
देवनानी ने इंदौर के देवी अहिल्याबाई होलकर विश्वविद्यालय सभागार में आयोजित सिंधु सम्राट महाराज दाहिर सेन की 1312 वे बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। समारोह को राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद और इन्नोवेटिव समिति फॉर पीपल्स अवेयरनेस केयर एंड एजुकेशन सोसाइटी ने आयोजित किया।
देवनानी ने कहा की महाराज दाहिर सहन वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने सनातन हिंदू धर्म को राजधर्म घोषित किया था। एकता अखंडता व राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक महाराज दाहिर सेन को राष्ट्र स्मरण करता रहेगा।
उन्होंने कहा कि सिंधी समाज एक भारत, श्रेष्ठ भारत, अखंड भारत का अभिन्न अंग है। सिंधी समाज ने भौतिकवाद का त्याग किया है। भारतीय मूल्यों और परंपराओं की प्रति दृढ़ता पूर्वक जुड़कर स्वरोजगार और शिक्षा के माध्यम से एक भारत, श्रेष्ठ भारत और अखंड भारत की संकल्पना को साकार किया है। सिंधी समाज मेहनती है। समाज ने स्वरोजगार के बल पर भारत के आर्थिक विकास में सक्रिय भागीदारी निभाई है।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि शिक्षा मंत्री के कार्यकाल के दौरान महाराणा प्रताप, हेमू कालानी और दाहिर सेन को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया। आज युवा पीढ़ी इन वीर महापुरुषो के त्याग ,बलिदान और राष्ट्र प्रेम की गाथाओं को पढ़कर राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
देवनानी ने अपने उद्बोधन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को याद करते हुए कहा कि इन दोनों व्यक्तियों को सिंधी समाज कभी नहीं भूल सकता। इन दोनों के प्रयासों से ही सिंधी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला। सिंधु दर्शन यात्रा आडवाणी जी के प्रयासों से ही आरंभ हो सकी। सन 1997 में पहली बार सिंधु दर्शन यात्रा आरंभ हुई । पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में 67 लोगों ने यात्रा में भाग लिया।
देवनानी ने कहा की हमें गर्व होना चाहिए कि हम सिंधी हैं। हमने भारत राष्ट्र की रक्षा के लिए समय-समय पर बलिदान दिया। सबसे पहले आक्रांताओं से मुकाबला किया। राष्ट्र की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने शहादत दी। आज भी हम मेहनत करके राष्ट्र के विकास में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें महाराज दाहिर सेन की वीरता, ओजस्विता का स्मरण कर ऊर्जा और साहस से लवरेज रहना चाहिए। राष्ट्र की प्रगति में निरंतर भागीदारी निभाने के लिए प्रयासरत रहना होगा।
देवनानी का इंदौर में राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद नई दिल्ली, इन्नोवेटिव समिति फार पीपल्स अवेयरनेस एंड केयर समिति इंदौर, भारतीय सिंधु सभा इंदौर, सिंधी साहित्य पंचायत इंदौर और सिंधी सुजाग संगत इंदौर सहित लगभग एक दर्जन संस्थाओं ने अभिनंदन किया। देवनानी का माला पहनाकर, शाल ओढ़ाकर और स्मृति चिन्ह प्रदान कर अभिनंदन किया गया।
इस मौके पर सांसद शंकर लालवानी, राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के उपाध्यक्ष मोहन मंगवानी, निदेशक रवि टेकचंदानी सहित अनेक गणमान्य नागरिक मौजूद थे।
What's Your Reaction?