संस्कारों के धन से धनवान बनें किशोर : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
गुरु से प्रेरणा प्राप्त कर निहाल हुए किशोर
सूरत (गुजरात) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का डायमण्ड नगरी सूरत में चतुर्मासकाल प्रारम्भ हो गया है। चातुर्मासिक प्रवेश, चतुर्मास की स्थापना, दीक्षा समारोह व 265वें तेरापंथ स्थापना दिवस के उपरान्त त्रिदिवसीय 19वें तेरापंथ किशोर मण्डल का ‘सृजन’ राष्ट्रीय अधिवेशन का क्रम में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है। मानव जीवन का प्राप्त होना विशेष बात होती है। उसमें भी संज्ञी मानव का जीवन विशेष उपलब्धि की बात होती है। वर्तमान अवसर्पिणी का पांचवां अर चल रहा है। जहां आयुष्य की अल्पता है। बहुत कम लोगों को वृद्धावस्था प्राप्त होती है।
आज किशारों का अधिवेशन हो रहा है। विभिन्न क्षेत्रों से किशोरों की समागति हुई है। मानव जीवन में किशोर अवस्था बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। यह नई पौध है, इसे अच्छे निमित्त मिलें और उपादान हों यह नई पौध बहुत विकसित हो सकती है और बहुत सुकार्यकारी हो सकती है। स्वयं के लिए, परिवार के लिए, समाज के लिए, देश के लिए और विश्व के लिए योगदान देने वाली बन सकती है। किशोरों को अच्छा पथदर्शन मिले, अच्छी सहायक समाग्री उपलब्ध हो जाए तो किशोर पीढ़ी का अच्छा विकास हो सकता है। किशोरों में ज्ञान का अच्छा विकास हो। किशोर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ बन सकते हैं। जो आज किशोर हैं, वे आगे राजनीति, धर्मनीति व सामाजिक क्षेत्र में उच्च स्थान को प्राप्त कर सकते हैं और अपनी सेवा दे सकते हैं।
किशोर ज्ञान संपदा से सम्पन्न बनें, धन-संपदा से भी सम्पन्न बन सकते हैं, इसके साथ-साथ किशोर संस्कार संपदा से भी सम्पन्न बनें। धन से धनवान हों अथवा न भी हों किन्तु संस्कार रूपी संपदा से किशोर धनवान बने, ऐसी अपेक्षा है। किशोरों का जीवन नशामुक्त रहे। आधुनिक, डिजिटल उपकरणों के अनावश्यक व अनपेक्षित प्रयोग से बचने का प्रयास हो। नवकार मंत्र के जप का प्रयास हो, जीवनशैली अच्छी हो। सत्संगति और सद्ज्ञान की प्राप्ति हो। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में आयोजित होने वाला यह अधिवेशन अच्छे परिणाम वाला हो, यह अभिकांक्ष्य है।
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